माली आवत देख के, कलियाँ कहें पुकार।
फूले फूले चुन लिए, कालि हमारी बार॥ - संत कबीर
का मांगू कछु थिर न रही, देखत नैन चला जग जाई।
एक लाख पूत सवा लाख नाती, ता रावण घर दीया न बाती। - संत कबीर
[ क्या मांगू! कुछ कायम नहीं रहता। आंखों देखते दुनिया चली जा रही है। जिस रावण के घर एक लाख पूत और सवा लाख नाती थे, उसके घर में न दीया है, न बाती। ]
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