कार्य की अधिकता मनुष्य को नहीं मारती, बल्कि चिंता मारती है। -स्वेट मार्डेन
चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह।
जिनको कछू न चाहिए, सोई साहंसाह ॥
-कबीरदास
चिंता एक काली दिवार की भांति चारों ओर से घेर लेती है, जिसमें से निकलने की फिर कोई गली नहीं सूझती। -प्रेमचंद
चिंता रोग का मूल है। - प्रेमचंद
बिस्तर पर चिंताओं को ले जाना, पीठ पर गट्ठर बाँध कर सोना है। -हैली बर्टन
प्राणियों के लिए चिंता ही ज्वर है। - शंकराचार्य
चिंताएं, परेशानियां, दुःख और तकलीफें परिस्थितियों से लड़ने से नहीं दूर हो सकतीं, वे दूर होंगी अपनी अंदरूनी कमजोरी दूर करने से जिसके कारण ही वे सचमुच पैदा हुईं है। -स्वामी रामतीर्थ
चिंता करता हूँ मैं जितनी
उस अतीत की, उस सुख की,
उतनी ही अनंत में बनती
जातीं रेखाएं दुःख की। -जयशंकर प्रसाद
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