मालिक को डाँटते हुए कहा गुब्बारे ने
'फुलाना है तो पम्प उठाओ हवा भरो
तब कहीं जाकर फूल पाऊँगा
गुब्बारा हूँ कोई इंसान नहीं कि तुम
मेरी तारीफ़ करो और मैं फूल जाऊं.'
गुब्बारा और इन्सान दोनों ही जानते हैं कि
जरुरत से ज्यादा फूल जाना ही नियति है
पर बाज नहीं आते नादानी से
सबक लेते ही नहीं एक-दूसरे की कहानी से.
मुझे गर्व है अपने अज्ञान पर
जिसके बल पर टिका हुआ हूँ अब तक
क्योंकि जिस गुब्बारे में होती है
कुछ कम हवा वो जल्दी नहीं फटता.
- सुभाष कालरा
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