न्याय का भेद
एक गूजर किसी बनिये का कर्जदार था। गूजर का दुर्भाग्य कि हर साल कुछ-न-कुछ अनहोनी होती रही। कर्ज चुकाना उसके लिए मुश्किल हो गया। अपने रुपयों का जोखिम देख बनिए ने उस पर मुकदमा दायर कर दिया। अपने हक़ में जल्दी फैसला हो जाने की नीयत से बनिए ने हाकिम को बीकानेर की एक बढ़िया पगड़ी उपहार में दी।
गूजर ने देखा कि न्याय की इन कचहरियों में रिश्वत से ही काम बनता है तो उसने भी चुपके से अत्यधिक दूध देने वाली एक भैन हाकिम को नजराने में दी। हाकिम ने गुजर के हक़ में फैसला सुना दिया।
न्यायालय में खड़ा बनिया रिश्वत का भेद कैसे प्रकट करता परन्तु फिर उसने इशारे-इशारे में समझाते हुए सिर की पगड़ी को हाथ में लेकर याचना के स्वर में कहा, "अन्नदाता, मेरी पगड़ी की कुछ को तो लाज रखिये!"
हाकिम उसके इशारे को समझ गया। वापस उसने वैसा ही जवाब दिया, "सेठजी, तुम्हारी पगड़ी तो भैंस चर गयी!"
साभार 'कादम्बिनी'
एक गूजर किसी बनिये का कर्जदार था। गूजर का दुर्भाग्य कि हर साल कुछ-न-कुछ अनहोनी होती रही। कर्ज चुकाना उसके लिए मुश्किल हो गया। अपने रुपयों का जोखिम देख बनिए ने उस पर मुकदमा दायर कर दिया। अपने हक़ में जल्दी फैसला हो जाने की नीयत से बनिए ने हाकिम को बीकानेर की एक बढ़िया पगड़ी उपहार में दी।
गूजर ने देखा कि न्याय की इन कचहरियों में रिश्वत से ही काम बनता है तो उसने भी चुपके से अत्यधिक दूध देने वाली एक भैन हाकिम को नजराने में दी। हाकिम ने गुजर के हक़ में फैसला सुना दिया।
न्यायालय में खड़ा बनिया रिश्वत का भेद कैसे प्रकट करता परन्तु फिर उसने इशारे-इशारे में समझाते हुए सिर की पगड़ी को हाथ में लेकर याचना के स्वर में कहा, "अन्नदाता, मेरी पगड़ी की कुछ को तो लाज रखिये!"
हाकिम उसके इशारे को समझ गया। वापस उसने वैसा ही जवाब दिया, "सेठजी, तुम्हारी पगड़ी तो भैंस चर गयी!"
साभार 'कादम्बिनी'
1 comment:
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