परदेश में विद्या मित्र है। विपत्ति में धैर्य मित्र है। घर में पत्नी मित्र है। रोगी का मित्र वैद्य है।
मरते हुए प्राणी का मित्र धर्म है। आचरण करने पर ज्ञान मित्र है। शत्रु सामने हो तो शस्त्र मित्र है। शस्त्र का मित्र साहस है। जो जरुरत पड़ने और संकट के समय पर काम आ जाए वह भी मित्र है। पर जो व्यक्ति स्वार्थी, नीच मनोवृत्तिवाला, कटु भाषी और धूर्त होता है उसका कोई मित्र नहीं होता, न वह ख़ुद किसी का मित्र होता है।
मुझे एकांत से बढ़कर योग्य साथी कभी नहीं मिला। -थोरो
दोस्ती धीरे-धीरे पैदा करो, लेकिन जब कर लो तो उसमें दृढ़ अटल रहो। - सुकरात
सबका मीत हम अपना कीना
हम सभना के साजन
सबको मित्र बनाओ तथा सबके मित्र बनो।
-गुरु नानक देव
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