Saturday, December 20, 2008

कदरदानी

आलिम अन्दर मयाने जाहिल रा।
मसले गुप्तः अंद सद्दिकां॥
शाहिदे दर मयाने कोरानस्त।
मशहफ़े दर मयाने जिन्दी कां॥
- शेख सादी

विद्वानों की कदर विद्वान ही करते हैं। मूर्खों में विद्वानों की वैसी ही दशा होती है जैसे अंधों में किसी सुंदरी की और नास्तिकों में सदग्रंथ की। एक अन्धे पुरूष की पत्नी की व्यथा इस बात से प्रकट होती है - सखी री ! काहे को करूं मैं सिंगार, पिया मोरे आंधरे। इसी प्रकार सदग्रंथ की कदर नास्तिक और मूर्ख नहीं कर सकते, न उससे लाभ उठा सकते हैं।

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