Tuesday, July 4, 2017

Daridrata / Poor

एक गांव के लोगों ने एक सिद्ध फ़क़ीर से कहा बादशाह तुम्हें बहुत  मानता है, उससे कहकर गांव में एक मदरसा बनवा दो।  उस फ़क़ीर ने कहा कि मैंने जीवन में किसी से कुछ माँगा नहीं किन्तु तुम कहते हो तो राजा से बात करूँगा।  वह फ़क़ीर राजधानी गया और बादशाह के द्वार पर सुबह-सुबह पहुँच गया।  भीतर जाकर देखा तो बादशाह मस्जिद में नमाज पढ़ रहा था।  घुटने टेके हुऐ, हाथ फैलाये हुए बादशाह ने नमाज के अंत में कहा कि 'हे अल्लाह मुझे और धन दो, मुझे और दो, मेरे राज्य की सीमाओं को और फैला दो, मुझ पर दया करो।  इतना सुनते ही फ़क़ीर एकदम लौट पड़ा।

बादशाह उठा तो उसने फ़क़ीर को सीढ़ियों से उतरते देखा तो वहीँ से चिल्लाया 'कैसे आये और कैसे लौट चले ?' 

फ़क़ीर ने कहा कि गलती से आ गया।  मैं समझा था तुम  बादशाह हो परन्तु यहाँ आकर पाया कि तुम भी भिखारी हो।  तुम भी अभी मांग ही रहे हो।  मैं भी तुमसे कुछ मांगने आया था।  जब तुम्ही मांग रहे हो तो तुमसे मांग कर तुम्हें कष्ट नहीं दूंगा. क्योंकि जिसके खुद के पास ही बहुत कम है उससे क्या मांगना। अब उसी से मांग लूंगा जिससे  तुम मांग रहे थे, बीच में दलाल को और क्यों डालूं ?  

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